जिले के बारे में
ऐतिहासिक दृष्टि से जनपद सुलतानपुर का अतीत अत्यंत गौरवशाली और महिमामय रहा है । पुरातात्विक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक तथा औध्योगिक दृष्टि से सुलतानपुर का अपना विशिष्ट स्थान है । महर्षि वाल्मीकि, दुर्वासा, वशिष्ठ आदि ऋषि मुनियों की तपोस्थली का गौरव इसी जिले को प्राप्त है । परिवर्तन के शाश्वत नियम के अनेक झंझावातों के बावजूद इसका अस्तित्व अक्षुण्य् रहा है ।
अयोध्या और प्रयाग के मध्य गोमती नदी के दोनों ओर सई और तमसा नदियों के बीच कभी यह भूभाग अत्याधिक दुर्गम था।गोमती के किनारे का यह क्षेत्र कुश-काश के लिए प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध है,कुश-काश से बनने वाले बाध की प्रसिद्ध मंडी यही पर है।प्राचीन काल मे सुलतानपुर का नाम कुशभवनपुर था जो कालांतर मे बदलते बदलते सुलतानपुर हो गया । मोहम्म्द गोरी के आक्रमण के पूर्व यह राजभरो के आधिपत्य मे था,जिनके जनपद मे तीन राज्य इसौली,कुलपुर व भादर थे,आज भी उनके किलों के भग्न अवशेष विद्यमान हैं,जो तत्कालीन गौरव व समृद्धि को मुखरित करते है जनश्रुति के अनुसार कुडवार राज्य के पश्चिम मे स्थित आज का गढ़ा ग्राम बौद्ध धर्म ग्रंथो मे वर्णित दस गणराज्यो मे एक था जहां के राजा कलामवंशी क्षत्रिय थे।इसका प्राचीन नाम केशीपुत्र था जिसका अस्तित्व ईसा की तेरहवी शताब्दी तक कायम था।
राष्ट्रीय चेतना के विकास मे सुलतानपुर का ऐतिहासिक योगदान रहा है।सन 1857 के स्वाधीनता संग्राम मे क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद को उखाड़ फेकने मे जान की बाजी लगाकर अंग्रेज़ो से मोर्चा लिया।सन 1921 के किसान आंदोलन मे इस जनपद ने खुलकर भाग लिया और सन 1930 से 1942 तक एवं बाद के सभी आंदोलनो मे यहां के स्वतंत्रता सेनानियो ने जिस शौर्य एवं वीरता का परिचय दिया वह ऐतिहासिक है।किसान नेता बाबा राम चंद्र और बाबा राम लाल इस संदर्भ मे उल्लेखनीय है, जिनके त्याग का वर्णन पं. जवाहर लाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा मे किया है ।
सुलतानपुर शहर (जिसके नाम से जिला है) 26 डिग्री 15 मिनट उत्तर अक्षांश और 82 डिग्री 05 मिनट पूर्व देशांतर में गोमती के दाहिने किनारे पर फैजाबाद के 61 किमी दक्षिण में, प्रतापगढ़ के 42 किमी उत्तर में और लखनऊ के पूर्व 138 किमी दक्षिण में स्थित है।यह सुलतानपुर, जफराबाद और जौनपुर के माध्यम से उत्तरी रेलवे (व्यापक मार्ग) के लखनऊ-जौनपुर खंड की शाखा पर स्थित है।रेलवे की एक और शाखा फैजाबाद और इलाहाबाद से जुड़ती है।मेटल रोड इसे फैजाबाद,शाहगंज (जिला जौनपुर),जौनपुर,प्रतापगढ़, रायबरेली और लखनऊ से जोड़ती है।सुलतानपुर सड़क के द्वारा गौरीगंज (अमेठी) से भी जुड़ा है।
मूल शहर गोमती के बाएं किनारे पर स्थित था। ऐसा माना जाता है कि भगवान राम के पुत्र कुश महाराज ने इसकी स्थापना की थी और उनके नाम पर इसका नाम कुशपुर या कुशभवनपुर रखा गया था। चीनी प्राचीन यात्री ह्वेनसांग द्वारा वर्णित है कि कुशपुर में जनरल कनिंघम द्वारा इस प्राचीन शहर की पहचान की गई थी। उन्होंने लिखा है कि उनके समय में यहाँ पर अशोक के द्वारा निर्मित बड़े स्तूप स्थित थे और बुद्ध ने यहां छह महीने तक शिक्षा दी थी।सुलतानपुर के उत्तर-पश्चिम में 8 किमी दूर एक गांव महमूदपुर में बौद्ध अवशेष अभी भी दिखाई देते हैं। बाद में शहर भरों के हाथों में आ गया किन्तु 12 वीं शताब्दी में मुसलमानों द्वारा उनसे छीन लिया गया।लगभग सात सौ पचास साल पहले कहा जाता है कि दो भाइयों सईद मुहम्मद और सईद अल-उद-दीन,जो पेशे से घोड़े के व्यापारी थे,ने पूर्वी अवध का दौरा किया और कुशभवनपुर के भर राजाओं को बेचने के लिए कुछ घोड़ों की पेशकश की जिन्होंने घोड़ों को जब्त कर लिया और दोनो भाइयों को मार दिया। यह समाचार अल-उद-दीन खिलजी को मिलने पर उन्होंने एक बड़ी सेना के साथ भरों पर आक्रमण किया और अधिकांश भरों की हत्या कर कुशभवनपुर के स्थान पर सुलतानपुर का निर्माण किया|
नदी के दाहिने किनारे पर एक गांव में सैन्य स्टेशन और छावनी स्थापित की गई थी, जिसे गिरघिट के नाम से जाना जाता था, लेकिन अधिकतर अधिकारियों द्वारा इसे सुलतानपुर या छावनी और ग्रामीण जनसंख्या द्वारा इसे कैंप या शिविर द्वारा बुलाया जाता था। इस स्थान पर ही वर्तमान शहर विकसित किया गया है। इस शहर में दो पार्क हैं जो सैनिकों, नाविकों और एयरमेन के बोर्ड द्वारा बनाए बनाये गए थे और इनमे से एक चिमनलाल पार्क के रूप में जाना जाता है। नगरपालिका बोर्ड द्वारा सहायता प्राप्त विनायक मेहता पुस्तकालय शहर में एकमात्र पुस्तकालय है। यह विनायक मेहता लाइब्रेरी ट्रस्ट एसोसिएशन द्वारा चलाया जाता है और इसमें 10,000 से ज्यादा पुस्तकें हैं ।
चौक में एक घंटाघर स्थापित है।गोमती के एक तट पर सीताकुंड है जहां देवी सीता ने अपने पति (भगवान् राम) के साथ अपने निर्वासन के दौरान स्नान किया था।चैत्र और कार्तिक मास में यहाँ स्नान मेले आयोजित किए जाते हैं। कलेक्टरेट के विपरीत सिविल लाइन में एक चर्च है जिसे क्राइस्ट चर्च के नाम से जाना जाता है जिसे 16 नवंबर 1869 को प्रारम्भ किया गया था। दक्षिण की ओर, चर्च के बगल में, विक्टोरिया मंजिल है,जो रानी विक्टोरिया की पहली जयंती की याद में बनी हुई है। अब इसे सुंदर लाल मेमोरियल हॉल कहा जाता है और इसमें नगर बोर्ड का कार्यालय है। 1954-55 में शहर में एक स्टेडियम बनाया गया जिसे पंत स्टेडियम के नाम से जाना जाता है।